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रथे॑न पृथु॒पाज॑सा दा॒श्वांस॒मुप॑ गच्छतम्। इन्द्र॑वायू इ॒हा ग॑तम् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rathena pṛthupājasā dāśvāṁsam upa gacchatam | indravāyū ihā gatam ||

पद पाठ

रथे॑न। पृ॒थु॒ऽपाज॑सा। दा॒श्वांस॑म्। उप॑। ग॒च्छ॒त॒म्। इन्द्र॑वायू॒ इति॑। इ॒ह। आ। ग॒त॒म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:46» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्रवायू) वायु और बिजुलीरूप अग्नि के सदृश प्रतापी राजा और सेना के ईश जनो ! आप दोनों (पृथुपाजसा) विस्तीर्ण बलयुक्त (रथेन) रमणीय वाहन से (इह) इस संग्राम में (आ, गतम्) आओ और (दाश्वासंम्) दाता जन के (उप, गच्छतम्) समीप प्राप्त होओ ॥५॥
भावार्थभाषाः - जैसे वायु और बिजुली बड़े प्रताप से युक्त वर्त्तमान हैं, वैसे ही राजा और मन्त्रीजन होवें ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे इन्द्रवायू इव प्रतापिनौ राजसेनेशौ ! युवां पृथुपाजसा रथेनेहाऽऽगतं दाश्वांसमुपगच्छतम् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रथेन) रमणीयेन यानेन (पृथुपाजसा) विस्तीर्णबलेन (दाश्वांसम्) दातारम् (उप) (गच्छतम्) (इन्द्रवायू) वायुविद्युदग्नी इव राजसेनेशौ (इह) अस्मिन् सङ्ग्रामे (आ) (गतम्) ॥५॥
भावार्थभाषाः - यथा वायुविद्युतौ महाप्रतापयुक्तौ वर्त्तेते तथैव राजाऽमात्यौ भवेताम् ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे वायू व विद्युत अत्यंत बलशाली असतात तसेच राजा व मंत्रीगण असावेत. ॥ ५ ॥